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आगाज़ और अन्जाम



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यही होता मेरे प्यार का आगाज़ तो, अन्जाम क्या होता.
रुसवा मुहब्बत पहले दिन, बाद कुछ शाम क्या होता.

यही सोचकर जमाने की परवाह, करना छोड़ दिया,
था पहले से इतना बदनाम, और बदनाम क्या होता.

मेरी खुदकुशी का सबब पूछ्नेवालों, दुनियां तो देखो,
चंद रोज़ न जिया गया हमसे, उम्र तमाम क्या होता.

रेत का था जो मकां मेरा, तो टूटना ही था,
कैसे नींद आती 'शिकन' इसमें, आराम क्या होता.

Comments

  1. Gaurav, this ghazal is written by me. You should acknowledge it or remove from your post. Thanks. Vijay 'shiken'

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